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मुस्कान -01-Jul-2022


कविता-मुस्कान
मानव मुस्कान भरो मन में
जीवन नीरस न बनने दो,
किसलय कुसुम सा खिलने दो,
भार बनो न धरती का,
जज्बा रखो कुछ करने का,
भौंरे गुनगुनाने दो कानन में
मानव मुस्कान भरो मन में
           उगता सूरज हो या ढलता,
           वह लिये लालिमा खुश रहता
           प्रातःकाल मतवाली हो,
           या अस्तकाल की लाली हो,
           अरूण उर्मि भर लो तन में। 
            मानव मुस्कान भरो मन में।      
बिनु पैर पर्वत चढ़ सकता है,
अंधा गीता पढ़ सकता है
देखो गति जल के सफरी का,
पावन पुनीत ध्वनि बसुरी का,
चित, चरित्र, चेतना, जीवन में |
मानव मुस्कान भरो मन में।    
            
             धन हो न हो, मन लक्षित हो,
             ह्रदय रति भाव से अखंडित हो,
             शुद्ध जीवन, बुद्ध- समर कर दो,
             जग में तुम नाम अमर कर दो,
             न व्यर्थ समय हो जीवन में। 
             मानव मुस्कान भरो मन में।|
पथ पकड़ चलो मत मुड़ो कहीं,
बांधा से विधु भी बधा नहीं,
पर्वत बांधा बन खड़ा अगर,
कस दो वह टूटे चरर मंरर,
नर हो न निराश रहो मन में |
मानव मुस्कान भरो मन में।|        

रचनाकार- रामवृक्ष,अम्बेडकरनगर       

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3 Comments

Raziya bano

02-Jul-2022 09:44 AM

Bahut khub

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Saba Rahman

01-Jul-2022 07:25 PM

Nice

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Alfia alima

01-Jul-2022 10:13 AM

बहुत खूब

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